जितेंद्र सुबह 9 बजे घर से निकलता तो उस की घर वापसी रात 12 बजे से पहले नहीं होती थी. एक दिन अचानक तबीयत खराब हुई तो जितेंद्र शाम 5 बजे ही घर जा पहुंचा. जब वह अपने घर पहुंचा, कमरे के अंदर से निशा की खिलखिलाहट सुनाई दी. जितेंद्र के पैर जहां के तहां ठिठक गए. वह मन ही मन सोचने लगा कि जब मैं घर में होता हूं तो निशा की त्यौरियां चढ़ रहती हैं. कुछ कहता हूं तो चिढ़ जाती है. कहीं वजह इस खिलखिलाहट में ही तो नहीं छिपी.
जितेंद्र का माथा ठनका. उस ने कदम बढ़ाया, लेकिन फिर पीछे खींच लिया. निशा कह रही थी, ‘‘तुम्हारे जोश की तो मैं दीवानी हूं. अरे छोड़ो यार, तुम किस लल्लू का जिक्र कर रहे हो. कहां तुम कहां वह. पति किसी लायक होता तो तुम से क्यों दिल लगाती.’’
निशा किस से बात कर रही थी, यह तो नहीं पता चला लेकिन वह यह जरूर समझ गया कि निशा खुश भी है और जोश में भी. उस की आवाज फिर सुनाई दी. वह कह रही थी, ‘‘तुम्हारे इसी जोश की तो मैं दीवानी हूं.’’
एकतरफा संवाद से जितेंद्र ने अनुमान लगाया कि कमरे में निशा के अलावा कोई और नहीं है. वह मोबाइल पर किसी से रसीली बातें कर रही होगी. जितेंद्र की खोपड़ी घूम गई. निशा बीवी उस की थी और जोश का गुणगान किसी दूसरे का कर रही थी. गुस्से में उस ने दरवाजे को धक्का दिया. भीतर से बंद न होने के कारण दरवाजा खुल गया.
सामने ही निशा कान से मोबाइल लगाए टहलते हुए किसी से बातें कर रही थी. पति को देखते ही हड़बड़ा कर उस ने मोबाइल डिसकनेक्ट कर दिया. निशा ने चेहरे पर मुसकान सजाने की जबरन कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अरे तुम, आज इतनी जल्दी आ गए?’’