Suicide Case: सरकारी डौक्टरों का काम केवल मरीजों का इलाज करना ही नहीं होता, बल्कि उन्हें पुलिस के लिए भी काम करना होता है. जैसे कि गिरफ्तार आरोपियों को फिटनैस सर्टिफिकेट देना, उन का मैडिकल करना आदि. सतारा की लेडी डौक्टर मानवी मुंडे ने पुलिस के अनुसार काम नहीं किया तो उन का जीना ऐसे मुश्किल हो गया कि...

सतारा की डौक्टर मानवी मुंडे अकसर रात को अस्पताल के अपने आवास की छत पर खड़ी हो कर आसमान में सितारों को ताकते हुए यह सोचती थी कि इन के पीछे कहीं उस की भी मंजिल होगी. उस के लिए डौक्टर बनना आसान नहीं था. महाराष्ट्र के बीड़ जिले के एक साधारण परिवार में पैदा हुई मानवी के फेमिली वालों को हमेशा से ही उस से बड़ी उम्मीद रही थी. पापा तो शुरू से कहते रहे थे कि उन की बेटी डौक्टर बनेगी और लोगों को नया जीवन देगी.

...और मानवी ने पापा का वह सपना पूरा भी किया. सरकारी मैडिकल कालेज में पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्रामीण इलाके में सेवा देने के लिए संविदा पर उसे 2 साल के लिए महाराष्ट्र के सतारा जिले की फलटण तहसील के उपजिला अस्पताल में नौकरी मिली. विनम्र, गंभीर और हर वक्त मदद के लिए तैयार रहने वाली मानवी से मरीज खुश रहते थे.

सरकारी डौक्टरों का काम केवल मरीजों का इलाज करना ही नहीं होता, बल्कि उन्हें अकसर पुलिस मामलों में गिरफ्तार हुए आरोपियों के मैडिकल, फिटनैस सर्टिफिकेट और पोस्टमार्टम की ड्यूटी भी संभालनी पड़ती है. इस में एक ओर जहां उन्हें अपना डौक्टरी का फर्ज निभाना होता है यानी जांच के बाद फिट और अनफिट घोषित करना होता है, वहीं दूसरी ओर उन पर कुछ ताकतवर लोगों का उलटेसीधे यानी गलत रिपोर्ट देने का दबाव भी होता है.

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