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डैक पर बजने वाला गाना भले ही बैडरूम में बज रहा था, लेकिन वह इतनी जोर से बज रहा था कि उस की लपेट में पूरा घर आ रहा था. घर में प्रवेश करते ही हम्माद ने देखा, लाउंज में खड़ा नौकर नसीर भी उस गाने का मजा ले रहा था. उसे देखते ही झट से सलाम कर के वह किचन की ओर बढ़ गया. हम्माद की अम्मी के कमरे का दरवाजा बंद था. सुबह से ही उन की तबीयत खराब थी. वह दवा खा कर लेटी थीं, मगर इस हंगामे में भला आराम कहां से मिलता.

काम की थकान की वजह से हम्माद का दिमाग पहले से ही खराब था, इस शोरगुल ने उसे और खराब कर दिया था. बैडरूम का दरवाजा खुला था. उस की बीवी दरखशां बैड पर औंधी लेटी गाने का मजा लेती हुई पैर हिला रही थी. हम्माद सिर दर्द की वजह से जल्दी घर आ गया था. इस हंगामे से उस की कनपटियां चटखने लगीं. दरखशां के करीब जा कर उस ने तेज आवाज में कहा, ‘‘मैडम…’’

दरखशां इस तरह चौंकी, जैसे किसी सुहाने ख्वाब में खोई रही है. वह एकदम से उठ बैठी. हम्माद ने डेक औफ किया और उसे घूरते हुए बोला, ‘‘यह घर है दरखशां. फिर अम्मी की तबीयत भी खराब है, इस के बावजूद तुम ने फुल वाल्यूम में डेक चला रखा है.’’

‘‘वो मैं… सौरी.’’ दरखशां घबराहट में बोली. उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था.

यह वक्त हम्माद के आने का नहीं था, इसलिए वह अपनी मनमर्जी कर रही थी. उस समय उस के दिमाग से यह बात निकल गई थी कि सास की तबीयत खराब है. उसे शर्मिंदगी महसूस हुई. वह इस तरह उठ कर खड़ी हुई, जैसे उस की टांगों में जान न हो.

‘‘एक कप चाय.’’ हम्माद की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था. कह कर वह वौशरूम में घुस गया. दरखशां की आंखें भर आईं. क्योंकि वह ऐसे लहजे की आदी नहीं थी. आंसू पीते हुए उस ने नसीर से चाय बनाने को कहा और खुद लाउंज में जा कर खड़ी हो गई.

चाय ले कर दरखशां कमरे में आई तो हम्माद कपड़े बदल कर बिस्तर पर लेट चुका था. चाय के साथ 2 गोलियां निगल कर उस ने कप तिपाई पर रख दिया और खुद कंबल ओढ़ कर लेट गया. दरखशां यह भी नहीं कह सकी कि सिर दबा दे. कंबल के साथ हम्माद ने खामोशी भी ओढ़ ली थी. वह लाइट औफ कर के सोफे पर बैठ गई. उस का मन रोने को हो रहा था. हम्माद का यह रवैया उसे पसंद नहीं आया था. उस ने आंखें मूंद लीं. तभी उस के जेहन में गुजरे दिनों की फिल्म चलने लगी.

इंटर पास कर के दरखशां ने कालेज में दाखिला ले लिया था, इस के बावजूद गुड्डे गुडियों से खेलने का शौक उस का गया नहीं था. उस ने गुड्डे का नाम मून रखा था तो गुडि़या का पिंकी. उस के इस खेल में उस की सहेली मारिया के अलावा आसपड़ोस की कुछ अन्य लड़कियां भी शामिल होती थीं. मारिया का घर पड़ोस में ही था. इसलिए वह अकसर दरखशां के साथ ही रहती थी.

दरखशां को गुड्डेगुडि़या के साथ खेलते देख उस की अम्मी अमीना अकसर नाराज हो कर कहतीं, ‘‘इतनी बड़ी हो गई है, फिर भी गुड्डेगुडि़यों के साथ खेलती रहती है.’’

तब दरखशां के वालिद राशिद कहते, ‘‘खेलती है तो खेलने दो, हमारी एक ही तो बेटी है. कम से कम सहेलियों के साथ घर में खेलती है, बेटों की तरह बाहर तो नहीं जाती.’’

दरखशां थी ही इतनी प्यारी, मासूम सूरत, सुर्खी लिए सफेद रंगत, बड़ीबड़ी नशीली आंखें, दरमियाना कद, उस पर सितम ढाती भोलीभाली सूरत.

दरखशां के वालिद एक विदेशी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर नौकरी करते थे. दरखशां से 3 साल छोटे 2 जुड़वां भाई थे – शाहिद और जाहिद. भाईबहन आपस में दोस्ताना रवैया रखते थे, मगर दोनों भाई दरखशां को परेशान करने से बाज नहीं आते थे. वे शरारती भी बहुत थे. अक्सर वे दरखशां के गुड्डेगुडि़यों को छिपा देते. दरखशां अम्मी से शिकायत करती तो वे मून और पिंकी को उस के हाथ में थाम कर कहते, ‘‘अम्मी लगता है, आपी इन्हें अपने साथ ससुराल भी ले जाएंगी.’’

ससुराल के नाम पर घबरा कर दरखशां अम्मी के सीने से चिपक जाती. ससुराल जाने के खयाल से ही वह घबरा जाती थी. अभी वह 17 साल की ही तो थी. अगले महीने 5 अप्रैल को उस की सालगिरह थी, जिस की तैयारी अभी से शुरू हो गई थी. दरखशां की सालगिरह हमेशा बड़े धूमधाम से मनाई जाती थी.

कालेज की पढ़ाई के दौरान दरखशां को गुड्डेगुडि़यों से खेलने का मौका कम ही मिलता था. लेकिन दिन में एक बार उन्हें अच्छी तरह देख कर वह तसल्ली जरूर कर लेती थी.

एक दिन वह कुछ पढ़ रही थी, तभी उस के वालिद ने उस की अम्मी से कहा, ‘‘अमीना, अब हमें दरखशां की शादी कर देनी चाहिए. रिश्ता अच्छा है, मना नहीं किया जा सकता. हम्माद मेरे दोस्त का बेटा है, डाक्टर है. देखाभला और जानासुना है. अब दोस्त नहीं रहा तो मना करना ठीक नहीं है. रजा ने इस रिश्ते के लिए मुझ से बहुत पहले ही वादा करा लिया था. उन की बेगम ने पैगाम भिजवाया है. कल वह आ रही हैं. सारी तैयारी कर लो. दरखशां को भी समझा देना. आज के जमाने में इस तरह का रिश्ता जल्दी कहां मिलता है.’’

अगले दिन हम्माद अपनी अम्मी साफिया बेगम और बहन शहनाज के साथ दरखशां को देखने आया. शहनाज की शादी हो चुकी थी. मारिया ने दिल खोल कर हम्माद की तारीफें कीं. साफिया बेगम ने दरखशां को अपने पास बिठाया और उस की नाजुक अंगुली में अंगूठी पहना कर रिश्ते के लिए हामी भर दी.

राशिद के सिर का बोझ उतर गया. दरखशां ने सरसरी तौर पर हम्माद को देखा. रौबदार संजीदा चेहरा, गंभीर आवाज. दरखशां का नन्हा सा दिल कांप उठा. उसे वह काफी गुस्से वाला लगा.

खाना वगैरह खा कर सभी चले गए. उन के जाते ही शाहिद और जाहिद ने दरखशां से छेड़छाड़ शुरू कर दी. उस की नाक में दम कर दिया. बेटी को परेशान होते देख अमीना नम आवाज में बोली, ‘‘मेरी बेटी को परेशान मत करो. अब सिर्फ 3 महीने की ही तो मेहमान है.’’

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